चेरिया बरियारपुर



बेगूसराय जिले की चेरिया बरियारपुर विधानसभा जिले का पुराना सामुदायिक विकास प्रखंड है।इस विधानसभा में चेरिया बरियारपुर, खोदावंदपुर, छौड़ाही प्रखंड एवं नावकोठी के महेशवाड़ा व पश्चिमी पहसारा पंचायतें शामिल हैं।इस विधानसभा में कभी समाजवादी राजनीति 
की गहरी छाप थी जो अभी भी देखने को मिलती है।इसी विधानसभा से साफ सुथरी व ईमानदार राजनीति के प्रतिविम्ब माने जाने वाले रामजीवन बाबू विधायक रहे,लालू की सरकार में कृषि मंत्री बने और पूर्व की बलिया लोकसभा से सांसद भी बने।चेरिया बरियारपुर विधानसभा त्रिकोणीय मुकाबले के लिए जानी जाती रही हैं।। वाम राजनीति का मजबूूत त गढ़ कहे जाने वाले बेगुसराय जिले  की इस विधानसभा से सिर्फ एक दफा ही सीपीआई के उम्मीदवार चुनाव जीते हैं।अभी वर्तमान विधायिका श्री मती मंजू वर्मा,कभी कांग्रेस और सीपीआई में रहे सुखदेव महतो की बहू हैं।
राजद के उम्मीदवारों ने भी यहां से कई बार जीत हासिल की।रामजीवन बाबू के सानिध्य में राजनीति का पाठ सीखने वाले अनिल चौधरी ने भी फरवरी 2005 व नवम्बर 2005 के चुनावों में जीत हासिल की थी।2010 और 2015 में जदयू की मंजू वर्मा विधायक चुनी जाती रही हैं।बिहार के अन्य विधानसभा क्षेत्रों की तरह यहां के चुनाव भी जातीय समीकरणों से प्रभावित रहे हैं।वाम दलों को छोड़कर बाकी के प्रमुख दलों ने आज तक के हुए चुनाव में सिर्फ दो जाति के उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है।बदलते राजनीतिक माहौल में समाजवाद से प्रभावित जातिय समूह के बड़े तबके ने भाजपा को नया ठिकाना बनाया है।जातीय समीकरण की बात करें तो चेरिया बरियारपुर  NDA के लिये सबसे सुरक्षित किला है परन्तु यहां हमेशा कुशवाहा व भूमिहार जाति के उम्मीदवारों के बीच मुकाबला होता रहा है।



              बखरी बोले

              तेघड़ा का तेज

इस बार की राजनीतिक परिस्थितियों में उम्मीदवारों को लेकर संशय है। 2010 में यह सीट जदयू के कोटे में थी और लोजपा एन डी ए से बाहर थी मुकाबला जदयू की मंजू वर्मा व अनिल चौधरी के बीच हुआ और कड़े मुकाबले में जदयू की मंजू वर्मा विजयी रहीं थी।
जैसा कि हमने कहा कि इस विधानसभा में भूमिहार, कोयरी मतदाताओं की बहुलता है और यादव,सहनी व अन्य पिछड़े मतदाता निर्णायक का काम करते हैं।पिछले दो चुनावों में क्षेत्र के निवासी और धर्मरथ मोटर सर्विस के मालिक  सुदर्शन सिंह निर्दलीय दंगल में कूदकर लोजपा के अनिल चौधरी की मुश्किलें बढ़ा देते हैं।इसबार भी उनकी तैयारी शुरू है रालोसपा सुप्रीमों के स्वागत में उनका समर्थकों के साथ उपस्थिति उनके मंसूबो को स्पष्ट करती हैं।
कुल मिलाकर देखें तो इसबार मंजू वर्मा को टिकट मिलने की सम्भावना क्षीण है। जदयू द्वारा इस जीती हुई सीट को छोड़ने की सम्भावना भी कम ही दिखती है तो कैसे चुनावी परिदृश्य उभरते हैं इसपर हमारी नजर बनी रहेगी।
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