बेगूसराय का संग्राम

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मुंगेर टाइम्स का चुनावी घोड़ा आ पहुंचा है अपने नए सराय   बेगूसराय जिले की बेगूसराय विधानसभा। इस सीट से कांग्रेस की श्रीमती अमिता भूषण विधायिका हैं।बेगूसराय के चेरिया बरियारपुर प्रखंड में इनका मायका है।राजनीति इनको विरासत में मिली है इनकी माताजी स्व  चन्द्रभानु देवी बेगूसराय के बलिया लोकसभा से कांग्रेस की सांसद रह चुकी हैं। अपनी मां की राजनीतिक विरासत के बल पर राजनीति में आई इस युवा नेत्री ने भी बलिया लोकसभा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर राजनीति में कदम रखा था पर असफल रहीं।
पिछली बार इन्होंने महागठबंधन की नैया पर बैठ बेगूसराय विधानसभा से जीत हासिल की थी और राजनीति के पंडितों को चौंकाया था।शहरी क्षेत्र होने,वाम दल के उम्मीदवार की मौजूदगी होने के बावजूद इन्होंने बड़े अंतर से यह सीट भाजपा से छीनी थी।
अमिता भूषण की जीत में महागठबंधन के वोटरों के अलावा उनके अपने प्रयासों की महत्वपूर्ण भूमिका रही।चित्तौड़गढ़ बचाने के नारे ने  निवर्तमान विधायक व भाजपा के उम्मीदवार सुरेंद्र मेहता को चारों खाने चित कर दिया।जीतने के बाद जनता को जो इनसे जो उम्मीदें थी वह अधूरी रह गयी ,इसका सबसे बड़ा कारण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पलटी रहा।विधानसभा चुनावों के कुछ महीने बाद ही अचानक बिहार की सत्ता का समीकरण बदल गया और महागठबंधन के हाथों से सत्ता एन डी ए के हाथ में चली गयी।विपक्षी विधायक रहते हुए इनके विधायक कोटे से की जाने वाली योजनाओं की अनुशंसा मिलने में दांव पेंच लगा रहा।वैसे क्षेत्र की जनता के साथ इनका जुड़ाव बना हुआ है लोगों के दुख सुख में ये तुरन्त हाजिर रहती हैं।अपने माता पिता के नाम से बनाये गए स्वयंसेवी संस्था के बैनर तले इनका सामाजिक कार्य भी निरंतर चलता रहता है।कोरोना काल में भी इनके सी बी आर के सी फाउंडेशन द्वारा कॉंग्रेस कार्यकर्ताओं के सहयोग से जरूरतमंदों की भरपूर सहायता की गई।कुल मिलाकर एक विधायक होने का दायित्व वो अच्छी तरह निभा रही हैं।

              बखरी बोले

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सूत्रों की माने तो इनको टिकट देने में इनके व्यक्तिगत प्रभाव के अलावा कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष अशोक चौधरी की कृपा रही थी। पलटी के बाद अशोक चौधरी की नीतीश के साथ नजदीकी की वजह से  कांग्रेस ने उन्हें अध्यक्ष पद से हटा दिया था। अध्यक्ष पद खोने की वजह से उन्होंने कांग्रेस से बगावत की योजना बनाई। अशोक चौधरी के उस अभियान में  कथित तौर से अमिता भूषण का नाम भी शामिल था।लेकिन बाद में इन्होंने अपने कदम पीछे खींच लिये औऱ कांग्रेस के प्रति अपनी निष्ठा बनाये रखी।इनकी यह निष्ठा  गठबंधन के रहते इनके टिकट की गारंटी करती है। परन्तु जीत का गणित इस बात पर निर्भर करेगा कि एन डी ए का उम्मीदवार किस दल व किस जाति का होगा।ज्यादा उम्मीद इस बात की है कि यह सीट भाजपा के कोटे में ही रहेगी।इस स्थिति में पूर्व विधायक सुरेंद्र मेहता की इस सीट के प्रबल दावेदार होंगे।बिहार भाजपा में सुशील कुमार मोदी की भूमिका बनी रही तो सुरेंद्र कुमार मेहता को टिकट मिलना तय है।परन्तु यहां एक भारी पेंच है वह है यहां के नए सांसद और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह।संसदीय चुनाव के वक्त सुरेंद्र कुमार मेहता की भूमिका और भाजपा के एक धनबली नेता पुत्र के बीच अनबन की खबरें सबको मालूम है।सूबे के बड़े ठेकेदार और नेता बने बेगुसराय के मेयर उपेंद्र प्रसाद सिंह के गिरिराज सिंह से नजदीकियों को भी सभी जानते हैं।मेयर साहब व उनके पुत्र की राजनीतिक आकांक्षाओं के बारे में भी सबको पता है।उस अधूरी आकांक्षा को पूर्ण करने के लिये दोनों पिता पुत्रों ने काफी धन व श्रम लगाया है।उस अधूरी इच्छा को पूरा करने के लिये मेयर साहब के पुत्र काफी मिहनत भी कर रहे हैं। इसबार भी बेगूसराय सीट के वो सबसे प्रबल दावेदार माने जाते हैं।अगर मगर की बात छोड़ें तो इसबार टिकट मिलने का संयोग प्रबल है।
हर विधानसभा की तरह यहां भी हर दल में एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति बनी हुई है।बाकी के बीमारों की चर्चा हम आगे करेंगे।फिलहाल कोरोना के संक्रमण से जूझ रही जनता और सरकार की बदइंतजामी को लेकर जनता में बेहद आक्रोश है।सुशासन बाबू की सारी व्यवस्था कोरोना काल में चरमराई हुई है।कहने को डबल इंजन सरकार है पर इसके दोनों इंजन फेल हुये दिखते हैं।
चुनाव होने व न होने को लेकर भी संशय बना हुआ है।सूत्रों की मानें तो भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व व नीतीश कुमार दोनों यही चाहते हैं कि किसी भी तरह चुनाव समय पर करवा लिए जाएं।ऐसा इसलिए कि कोरोना को लेकर चल रहे लॉक अन लॉक की आड़ में चुनाव जीतना आसान होगा।जनता कोरोना से मरते लोगों पर जितने आंशु बहाए राजनीतिज्ञों के लिए तो हम बस एक नम्बर हैं। 


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