तेघड़ा विधान सभा



मुंगेर टाइम्स के चुनावी घोड़े का अगला पड़ाव है बेगुसराय जिले की काफी महत्वपूर्ण मानी जाने वाली सीट तेघड़ा।
तेघड़ा विधान सभा नए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आया है। यह विधान सभा तेघड़ा विकास खंड व् बरौनी खंड के   राजवाड़ा ,अमरपुर ,पिपरा देवस ,हाजीपुर एवं बीहट नगर पंचायत तथा पपरौर ,गरहरा ,सिमरिया पंचायतों को मिलकर बना है। तेघड़ा विधानसभा जो पहले बरौनी विधानसभा के रूप में जाना जाता था। ।
 इस क्षेत्र को संयुक्त बिहार की विधानसभा में पहला वामपंथी विधायक भेजने का गौरव प्राप्त है।1962 में सीपीआई के कॉम चंद्रशेखर सिंह बरौनी विधानसभा से विधायक चुने गए  थे। 1962 से 2010 तक यह सीट   वामपंथ का अभेद्द दुर्ग हुआ बना रहा। 2010 के विधानसभा चुनाव में परिसीमन से बदली परिस्थितियों में बिहार का यह लाल दुर्ग ढह गया।इस लाल दुर्ग में सेंध लगाने का काम भी घोर दक्षिणपंथी दल भाजपा के उम्मीदवार ललन कुंवर ने किया था।बताते चलें की ललन कुंवर की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी वामपंथ से जुडी हुयी है। 
२०१० के बाद पुनः २०१५ के चुनाव में भी राजद के पैराशूट उम्मीदवार डार्क  हॉर्स साबित हुए और महागठबंधन की आंधी में न वामपंथ अपना दुर्ग वापस ले पाए न भाजपा अपना तम्बू बचा पाई। राजद के उम्मीदवार वीरेंद्र कुमार ने 15 हजार मतों के अंतर् से चुनाव जीतकर राजनीती के सूरमाओं को धूल चटा दिया।भाजपा के रामलखन सिंह दूसरे नंबर पर रहे  तो सीपीआई के रामरतन सिंह  तीसरे नंबर पर पिछड़ गए। 2010 के बाद के परिणामों पर नजर डालें तो परिसीमन के बाद इस सीट पर वामपंथी प्रभाव लगातार घटता जा रहा है।पिछले लोकसभा चुनाव में इसी क्षेत्र के लेनिनग्राद कहे जाने वाले बीहट ग्राम निवासी कन्हैया कुमार को इस क्षेत्र से बहुत उम्मीदें थी परंतु निराशा हाथ लगी।सन्तोष की बात यह रही कि इस क्षेत्र में पिछली विधानसभा चुनाव के मुकाबले वे दूसरे नम्बर पर रहे।
इतिहास को और सीपीआई संघटन की मजबूती को देखते हुए आगामी चुनावों में भी सीपीआई का उम्मीदवार होगा यह तो तय है।राजद के जीते हुए उम्मीदवार की चुनाव जीतने के बाद सक्रियता नहीं के बराबर है लोग लालटेन लेकर उन्हें खोज रहे हैं इसबार उनको उम्मीदवारी मिलेगी इसमें संदेह है।एन डी ए की ओर से इस सीट पर भाजपा की दावेदारी रहेगी पर पिछली जीत के समीकरण को देख इस सीट पर जदयू भी दावा ठोंक सकती है।
महागठबंधन से जदयू के अलग हो जाने से  उसका आधार वोट एन डी ए की ओर शिफ्ट होगा यह तय है।ऐसी स्थिति में  राजद इस सीट को कांग्रेस की झोली में डाल सकती है तब कांग्रेस के कौन उम्मीदवार होंगे यह महत्त्वपूर्ण होगा।महागठबंधन में वामदलों खासकर सीपीआई की एंट्री की बावत भी फुसफुसाहट जारी है ऐसी स्थिति में सीपीआई कम से कम तेघड़ा,बछवाड़ा और बखरी पर लड़ेगी ही।लेकिन सीपीआई के महागठबंधन में शामिल होने से एक दशक बाद फिर इस सीट पर कोई वामपंथी चुना जा सकता है।
हर सीट की तरह यहां के चुनावी अखाड़े में नए पहलवानों की दावेदारी शुरू है।यहां से कई बार किस्मत आजमा चुके भाजपा नेता रामलखन सिंह,पूर्व विधायक ललन कुंवर,कांग्रेस से भी कई नेता अपनी जुगत भिड़ाने में लगे हैं।सीपीआई में भी उम्मीदवारों को लेकर मंथन जारी है सीपीआई के मठाधीश फिर से कन्हैया कुमार को अखाड़े में उतारने की बात भी कर रहे हैं।अब जब चुनावी चौसर बिछेगी तो मुंगेर टाइम्स पुनः आपको नई कहानी व जनता की राय लेकर आपके पास हाजिर होगा।
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