जितनी बंटी बाढ़ अनुदान राशि, उसकी चौथाई भी बरसात पूर्व खर्च हो तो रुकेगी बर्बादी, रु. 375 करोड़ से अधिक बचेंगे भी

(अरविंद कुमार) जिले में हर वर्ष दाे वर्ष पर बाढ़-जलजमाव से कराेड़ाें का नुकसान हाेता है। लाखाें हेक्टेयर खेत की फसल मारी जाती है। लाेगाें के घर पानी में बह जाते हैं। सड़कें-पुलिया धंस जाती हैं। यहां तक कि बने-बनाए नालाें के स्लैब ताेड़ने पड़ते हैं। कम से कम दाे महीने प्रभावित इलाकाें के लाेग दुर्दशा झेलते हैं।

ऐसे लाेगाें के बीच बाढ़ राहत-अनुदान में सरकार अरबाें रुपए खर्च करती है। लेकिन, इससे बचाव के लिए समय से जल निकासी और बचाव पर काम नहीं हाेता है। जबकि, इससे न केवल आगे के लिए काम हाे सकेगा और लाेगाें काे त्रासदी से राहत मिल सकेगी, बल्कि सरकार के कराेड़ाें रुपए बचेंगे भी। मानव, फसल और पशुओं की व्यापक क्षति में भी कमी आएगी। उदाहरण 2020 का लें। इस वर्ष जिले के 15 प्रखंडों की 287 पंचायतें बाढ़ से प्रभावित हुईं। 3156 वार्डों की 22.66 लाख आबादी को बाढ़-जलजमाव की त्रासदी झेलनी पड़ी। जनजीवन अस्त-व्यस्त हाे गया। सरकार की ओर से 75921 पाॅलीथिन शीट व 57033 पैकेट सूखा राशन का वितरण किया गया। 41.9 लाख विस्थापिताें को सामुदायिक किचन में भोजन कराया गया। 6,51,695 बाढ़ प्रभावितों के खाते में अब तक 300 करोड़ से अधिक रुपए डाले गए हैं।

साथ ही 1.26 लाख हेक्टेयर खेत की फसल क्षति हाेने के कारण 146.47 करोड़ रुपए मुआवजे की अनुशंसा जिला प्रशासन की ओर से की गई है। इसी तरह 2017 में भी जिले में बाढ़ और जलजमाव से व्यापक क्षति व तबाही हुई थी। उस वर्ष भी करीब 500 करोड़ रुपए बाढ़ बचाओ, फसल क्षति, अनुदान राशि वितरण पर खर्च हुआ था।

  • 75921 पाॅलीथिन शीट और 57033 पैकेट सूखा राशन का वितरण
  • 1.26 लाख हे. फसल क्षति, 146.47 करोड़ रु. प्रस्तावित
  • 300 करोड़ से अधिक रुपए 651695 बाढ़ प्रभावितों के खाते में डाले

बरसात के ढाई माह बाद खेताें का पानी न निकला
बाढ़ से बचाव के लिए 15 वर्ष पूर्व शुरू हुई बागमती परियोजना कछुआ चाल के कारण अब तक पूरी नहीं हुई। बल्कि, इसके कार्य जारी रहने के कारण लोगों की परेशानी और बढ़ गई। स्थिति ताे यह है कि इस वर्ष भी समय से तटबंध की मरम्मत, जल निकासी के लिए पुलिया व स्लुइस गेट का निर्माण नहीं हाे पाया। पथ निर्माण व ग्रामीण कार्य विभाग पुलिया दिए बगैर सड़कें बना रहा है। इस कारण पानी का सही ढंग से बहाव नहीं हाे पाता है और बरसात के ढाई महीने बाद भी जिले के 50 हजार हेक्टेयर से अधिक खेताें में पानी लगा हुआ है।

ड्रेनेज सिस्टम व पुल-पुलिया होंगे बाढ़ और जलजमाव से बचाव में काफी सहायक
बिहार अभियंत्रण सेवा समन्वय समिति के संयोजक जल संसाधन विभाग के रिटायर्ड कार्यपालक अभियंता ई. राम स्वार्थ साह ने कहा है कि जलनिकासी के लिए एक से 5 लाख तक की लागत वाली ग्रामीण सड़कों की चौड़ाई के अनुसार छोटे-छोटे पुलिया बनाने जाने चाहिए। इन पर आवश्यकतानुसार स्लुइस गेट भी बनाए जा सकते हैं। इंटरकनेक्ट ड्रेनेज सिस्टम बनाकर उन्हें एक-दूसरे से जोड़ा जा सकता है। इससे जल निकासी ताे हाेगी ही, जरूरत पड़ने पर नदियाें में जमा पानी से सिंचाई भी की जा सकती है। बरसात पूर्व यदि कुछ इस तरह के उपाय किए जाएं ताे सिर्फ 125 करोड़ रुपए खर्च कर बाढ़-जलजमाव से बहुत हद तक राहत मिल सकती है। साथ ही सरकार के तीन चाैथाई यानी 375 करोड़ से अधिक रुपए बचेंगे भी।



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गायघाट में खेतों में जमा पानी।
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