
समाज में महिलाओं की कितनी ही बराबरी की बातें और दावे किए जाते हों, लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है। सरकार बढ़ती आबादी पर लगाम लगाने के लिए परिवार नियोजन कार्यक्रम चला रही है, लेकिन जागरूकता के अभाव में इस क्षेत्र में अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही है। वैसे महिलाएं इस ओर पुरुषों की तुलना में अधिक जागरूक है। पुरुषों में परिवार नियोजन को लेकर गंभीरता नजर नहीं आ रही है एवं खुद की बजाय महिलाओं का बंध्याकरण करा रहे हैं।
अगर पुरुष अपनी इस सोच का त्याग करके नसबंदी को अपना ले तो फिर जनसंख्या पर बहुत ही जल्द नियंत्रण पाया जा सकता है। सेंटर फॉर कैटेलाइजिंग चेंज द्वारा महिला पंचायत प्रतिनिधियों के सशक्तिकरण हेतु चलाए जा रहे चैंपियन परियोजना ने परिवार नियोजन की सेवाओं को सुदृढ़ करने की प्रेरणा दी है।
वार्ड सदस्यों के प्रयास से कई पुरुष कराए नसबंदी
तिलौथू प्रखंड की वार्ड सदस्य कुसुम देवी, वार्ड सदस्य, वार्ड संख्या 2, चितौली पंचायत; पिंकी गुप्ता, वार्ड सदस्य, वार्ड संख्य 7, तिलौथू पश्चिमी पंचायत, रोहतास जिला ने वर्तमान में चल रहे परिवार नियोजन पखवाड़ा जो कि पुरुष नसबंदी को प्रोत्साहित करने के लिए है। इस मुद्दे को सामाजिक सोच की विचारधारा से जोड़ने का प्रयास कर रही है। कुसुम देवी और पिंकी गुप्ता ने कई जागरूकता कार्यक्रम किया है।
पुरुषाें के बीच भ्रम कि नसबंदी से होगी परेशानी
पिंकी गुप्ता एवं कुसुम देवी का मानना है की समाज में पुरुषों के बीच एक भ्रम फैला हुआ है कि नसबंदी कराने से पुरुषों में कुछ कमी हो जाएगी और कई माह तक उन्हें आराम करना होगा। जिससे कामकाज व घर की आय प्रभावित होगी। वहीं समाज में उन्हें दोयम दर्जे की दृष्टि से देखा जाएगा, पर वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है। यह सिर्फ एक सामाजिक सोच है। जिसे बदलना बहुत ही आवश्यक है। रुढियों को तोड़ना होगा।