बरबीघा के बोल


मुंगेर टाइम्स की टीम आज पहुंची है शेखपुरा जिले की विधानसभा बरबीघा।बरबीघा से सटा माउर गांव बिहार केसरी बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्री  कृष्ण सिन्हा का पैतृक गांव है।1977 से पहले भी यह क्षेत्र सामान्य क्षेत्र हुआ करता था और इस विधानसभा से श्री कृष्ण सिंह भी एक बार विधायक चुने गए थे।बाद में उनके पुत्र श्री शिवशंकर सिंह भी दो मर्तबा विधायक बने 1972 के विधानसभा चुनाव में शिवशंकर सिंह सीपीआई के उम्मीदवार के रूप में व उनके अनन्य सहयोगी रहे राजो सिंह एक बागी के रूप में निर्दलीय चुनाव लड़े और बाजी मारी तेजतर्रार राजो सिंह ने।1977 से यह सीट सुरक्षित घोषित हो गयी और नयनतारा दास यहां के विधायक चुने गए।1980 में यह सीट कांग्रेस के महावीर चौधरी ने जीती और उनकी जीत का सिलसिला 1995 तक जारी रही,इस बीच वो कई महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री भी रहे।उनके बाद 2000 में यह सीट उनके पुत्र अशोक चौधरी ने जीती जो अभी नीतीश कुमार की सरकार में मंत्री हैं।2005 में इस सीट पर जदयू यानि एन डी ए के राम सुंदर कनौजिया ने जीत ली और महावीर चौधरी परिवार की चौधराहट खत्म हो गयी।परिसीमन के बाद पुनः सामान्य हुई इस सीट से जदयू के ही गजानन शाही ने इस सीट पर कब्जा किया,2015 में यह सीट महागठबंधन के घटक कांग्रेस के कोटे में गयी और उम्मीदवार बने राजो बाबू के पौत्र सुदर्शन कुमार, 2010 के चुनावों में इस सीट से ट्रायल मार चुके सुदर्शन कुमार को महागठबंधन की लहर का जबरदस्त फायदा मिला। उन्होंने बरबीघा के पुराने सामाजिक कार्यकर्ता, बरबीघा नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष रालोसपा के उम्मीदवार श्री शिव कुमार को बड़े मतों के अंतर से हराकर जीत हासिल की।इस तरह अपने दादा की 1972 में हुई जीत को उनके पोते ने दोहरा दिया।सुदर्शन कुमार युवा हैं, तेज तर्रार हैं और राजो बाबू के द्वारा शेखपुरा जिले को दी गयी विकास की बेमिसाल सौगात है पर इस बार के राजनीतिक समीकरण क्या बनते हैं उनकी जीत उसपर ही निर्भर करेगी।वैसे उनके लिए फिलहाल सन्तोष की बात यह है कि उनके पिछले चुनाव में प्रतिद्वंद्वी रहे व जनता के बीच लोकप्रिय शिव कुमार रालोसपा से अलग हो चुके है ।वो अभी जहानाबाद के पूर्व सांसद डॉ अरुण कुमार के खेमे में हैं। डॉ अरुण कुमार को  रालोसपा से बगावत करने के बाद नया ठिकाना नहीं मिल पाया है।डॉ अरुण कुमार समता पार्टी की स्थापना के वक्त से  नीतीश कुमार के साथ थे।प कुछ दिनों बाद ही उनसे अनबन हो गयी और फिलवक्त वो नीतीश कुमार के मुखर आलोचकों में गिने जाते हैं।इस स्थिति में राजग से उनका सम्बंध बन पाएगा इसमें तनिक सन्देह है और महागठबंधन के साथ जाने पर अपनी पार्टी के लिये यह सीट कांग्रेस से छीन लेना और मुश्किल होगा।ऐसी स्थिति में शिव कुमार बाबू क्या करेंगे यह अनुमान लगाना अभी मुश्किल है।वैसे क्षेत्र में उनकी सक्रियता बराबर बनी हुई है।परिसीमन के बाद बरबीघा विधानसभा नवादा लोकसभा के अंतर्गत आता है।नवादा के सांसद के रणनीतिकार उनके अनुज की नजर भी इस सीट पर जरूर होगी और अपने किसी 
खास के लिये इस सीट को लोजपा के कोटे में जरूर लेने की कोशिश करेंगे।राजग की ओर से कद्दावर नेता को खड़ा करने पर सुदर्शन कुमार की नैया डूब सकती है।
फिलहाल कयासों का दावों प्रति दावों का दौर जारी है।समीकरणों के बनने बिगड़ने की चर्चाएं भी आम है तो पुनः आएंगे बरबीघा की जनता की नब्ज टटोलने और ताजा हालातों से रूबरू करवाएंगे।

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